शाहगंज (जौनपुर) 'मुझे अपनों ने मारा, गैरों में कहां दम था, मेरी किश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था..।'यूपी में होने वाले निकाय चुनाव में शाहगंज सीट पर हाथ आजमा रहे ज्यादातर प्रत्याशियों का हाल कुछ ऐसा ही है। प्रत्याशियों ने जिनके सहारे जीत की बिसात बिछाई थी, वही उनके सामने ताल ठोकने को तैयार दिखाई दे रहे हैं। मैदान में आमने-सामने आने वाले दोस्त आज एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। निकाय चुनाव ने दोस्तों के बीच दरार पैदा कर दी है।
यूपी निकाय चुनाव की तारीखों की घोषणा जल्द हो सकतीं हैं । जल्द आरक्षण भी घोषित हो जायेंगी ।
यदि हम शाहगंज सीट की बात करें तो एक-एक वार्ड में कई-कई प्रत्याशी हाथ आजमा रहे हैं। यहां तक कि चेयरमैन पद पर चुनाव लड़ने के लिए हमेशा एक दुसरे के साथ देखे जाने वाले लोग चुनाव के मैदान में उतरने के लिए बेताब है ।निकाय चुनाव ने इलाके की फिजा बदल दी है। सुबह से रात तक शहर की हर गली में चुनाव के मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार मतदाताओं से संपर्क कर रहे हैं अपनी पार्टी टिकट पक्की कहतें हुए लोगों से जीत का आशीर्वाद मांग रहे हैं। नगर के गलियों में जिंदाबाद के नारे भी गूंज रहे हैं, लेकिन चुनाव से अपनों के बीच ही तलवार खिच गई है। चुनाव लड़ने की तैयारी लोगों ने कई महीने पहले से शुरू कर दी थी। जीत की नैया पार लगाने में उन्हें सबसे ज्यादा विश्वास अपने दोस्तों व रिश्तेदारों पर था। उनके साथ बैठकर उन्होंने चुनाव लड़ने की रणनीति तैयार की थी। चुनाव नजदीक आते-आते दोस्तों व रिश्तेदारों को भी जनप्रतिनिधि बनने का मन बन गया। दोस्त व रिश्तेदार का साथ देने की बजाए वह भी मैदान में उतर आए।शाहगंज सीट से नगर पालिका चुनाव में एक दर्जन से अधिक ऐसे प्रत्याशी हैं, जिनके सामने उनके वर्षों पुराने दोस्त या रिश्तेदार उन्हें टक्कर दे रहे हैं। मैदान में उतरने वाले नेता को सबसे ज्यादा हार का डर अपनों से ही लग रहा है।क्योकि कि कुछ ऐसा नेता है जो पिछ्ले चुनाव में अपनें दोस्त व रिश्तेदारों के साथ समीकरण तैयार कर जीत हासिल की थी ।अब जिसका प्रमुख कारण है कि दोस्त से प्रतिद्वंद्वी बने प्रत्याशी को उनकी हर रणनीति का पहले से पता है। देखना है चुनाव में प्रतिद्वंद्वी बने दोस्त व रिश्तेदार के बीच दरार कम होती है या बढ़ती है।
✍️..... कुमार विवेक
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